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टुंडी (धनबाद) चंद्रशेखर सिंह : धनबाद जिले के टुंडी की राजमाता विद्यावती देवी (72) का निधन गुरुवार अलसुबह हो गया. वह टुंडी के अंतिम राजा रावणेश्वर प्रसाद सिंह की पत्नी थीं. राजा का निधन दो दशक पूर्व हो गया था. विद्यावती देवी गिरिडीह के देवरी प्रखंड के हीरोडीह थाना अंतर्गत किसगो गांव के श्यामसुंदर नारायण सिंह की बेटी थीं.
रानी की हैं तीन पुत्रियां, तीनों का हो चुका है विवाह
रानी को तीन पुत्रियां कविता, सविता और रीना हैं. तीनों पुत्रियों का विवाह हो गया है. फिलहाल बड़े दामाद देवेंद्र नारायण सिंह यहीं रहते हैं. राजवंश को कोई पुत्र नहीं है. इस तरह रानी के निधन के बाद एक युग का अंत हो गया.
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टुंडी राज का इतिहास 400 वर्ष से भी अधिक पुराना
टुंडी का साम्राज्य सारवां (देवघर) तक फैला था. सारवां स्टेट राजा रावणेश्वर प्रसाद सिंह के पिता राजा रणविजय नारायण सिंह को भागलपुर स्थित लक्ष्मीपुर स्टेट से दहेज के रूप में मिला था. टुंडी राज की स्थापना का इतिहास 400 वर्ष से भी अधिक पुराना है. इसकी स्थापना की कहानी अयोध्या राज से जुड़ी हुई है. अयोध्या से पुरी पर्यटन के लिए तीन भाई एक साथ निकले थे. यात्रा के क्रम में टुंडी पहुंचे. यहां कुछ दिनों तक विश्राम किया. यहां तब कोल-भील का राज था.
टुंडी के प्राकृतिक सौंदर्य ने मोहा राजकुमारों का मन
यहां की प्राकृतिक सुंदरता व बराकर नदी की कलकल धारा ने राजकुमारों का मन मोह लिया. तीनों भाइयों में ज्येष्ठ दीपपाल सिंह ने यहां अपना राज स्थापित करने की इच्छा जाहिर की. तीनों भाइयो ने कोल-भील से संबंध स्थापित कर तत्कालीन किलेदार, जो काशीपुर महाराज के अधीन था. उनका निवास स्थान गुवाकोला में था, को युद्ध में पराजित कर अपना राज स्थापित किया.
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वापस लौटना पड़ा काशीपुर महाराज को
जब काशीपुर महाराज को इस घटना की जानकारी मिली तो उन्होंने प्रतिकार किया पर विफल रहे. काशीपुर महाराजा को वापस लौटना पड़ा. दूसरे भाई नंद कुमार सिंह साधु बन गये और तीसरे भाई मयूरभंज (ओडिशा) चल गये और वहां राज स्थापित किया. राजा दीप पाल सिंह के पुत्र इंद्रजीत सिंह ने वर्तमान टुंडी प्रखंड के मोहनाद (महाराजगंज) के पास अपना गढ़ बनाया. वहीं के राजाबांध और रानीबांध इसके उदाहरण हैं.
राजा बैकुंठ नारायण सिंह ने धरमपुर को बनायी अपनी राजधानी
राजा दीपपाल सिंह के दसवें पुश्त के राजा बैकुंठ नारायण सिंह ने अपनी राजधानी बराकर नदी किनारे धरमपुर को बनाया. बैकुंठ नारायण सिंह के पुत्र हुए राधा मोहन सिंह. कहा जाता है कि किसी कारण से बैकुंठ नारायण सिंह ने अपने पुत्र को श्राप दे दिया था कि वह राज सत्ता से वंचित रहेगा. जैसे ही राधा मोहन सिंह को गद्दी पर बैठाया गया, तो उनकी मृत्यु हो गयी. तब राधा मोहन के पुत्र लक्ष्मीनारायण सिंह को आनन-फानन में राजगद्दी पर बैठाया गया.
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लक्ष्मीनारायण सिंह हुए टुंडी वंश के सबसे प्रतापी राजा
इसी बीच राज परिवार ने अपना गढ़ टुंडी में बना लिया. राजा लक्ष्मीनारायण सिंह इस वंश के सबसे प्रतापी राजा हुए. उसके कारण बाइसी चौरासी राजा ने उन्हे अपना सभापति बनाया और उस पद पर वह जीवन पर्यंत रहे. उनके पुत्र रणविजय नारायण सिंह हुए, जिन्हें टिकैत पद से विभूषित किया गया.
राजमाता के निधन पर विधायक ने जताया शोक
इसी वंश के अंतिम राजा रावणेश्वर प्रसाद सिंह हुए. उनका जन्म 15 जनवरी 1942 को सारवां में हुआ और निधन 15 जनवरी 2002 को टुंडी में हुआ था. विद्यावती देवी उन्हीं की पत्नी थीं. इस वंश का राज टुंडी से लेकर देवघर तक फैला था. टुंडी की राजमाता के निधन पर टुंडी विधायक मथुरा प्रसाद महतो ने शोक जताया है. कहा कि रांची में रहने के कारण सशरीर मौजूद नहीं हो सका.
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