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Oceans Of The World : हमारा ब्रह्मांड विशालकाय है, जिसका कोई अंत नहीं है. इसकी तुलना में धरती मात्र एक धूल कण के समान दिखती है. सदियों से हम ब्रह्मांड के रहस्यों को सुलझाने की कोशिश करते रहे हैं. आज इंसान हजारों प्रकाश वर्ष दूर स्थित ग्रहों और तारों पर रिसर्च करने में सक्षम है और वहां होने वाली घटनाओं के बारे में भी हमें जानकारी मिलती रहती है, लेकिन यह जानकर आपको हैरानी होगी कि हम अब तक अपनी पृथ्वी को ही नहीं जान पाये हैं.
महासागरों से ज्यादा अंतरिक्ष में रिसर्च
चांद पर अमेरिका का पहला मिशन 1969 में गया था, जिसमें इंसान ने पहली बार धरती के बाहर चांद पर कदम रखने में सफलता पायी. अब तक कुल 12 लोग चांद पर कदम रख चुके हैं. इसके अलावा कई मानव रहित अंतरिक्षयान दूर-दूर स्थित ग्रहों के चक्कर लगाकर उसकी जानकारियां जुटा रहे हैं. इसके मुकाबले महासागरों की गहराइयों में अब तक कुल 6 ही लोग गये हैं. महासागर के अंदर मौजूद धरती की सबसे गहरी जगह मारियाना ट्रेंच है, जिसकी गहराई 11034 मीटर है. इसकी तलहटी में जाने में आज तक कोई भी इंसान सफल नहीं हो पाया है. कुल मिलाकर धरती पर मौजूद महासागरों के 95 प्रतिशत हिस्से से हम आज भी अनजान हैं.
समुद्र की गहराई का कैसे लगता है पता
धरती पर मौजूद पूरे समुद्री तल की मैपिंग की जा चुकी है, लेकिन हम समुद्र के अंदर 5 किलोमीटर की दूरी से ज्यादा अंदर तक देखने में सक्षम नहीं हैं. समुद्र की गहराइयों को नापने के लिए सोनार नाम के यंत्र का इस्तेमाल किया जाता है. सोनार साउंड वेव्स को समुद्र में भेजता है, जो अंदर मौजूद ऑब्जेक्ट से टकरा कर वापस आती है. इससे समुद्र तल की गहराई और ऊंचाई का पता आसानी से चल जाता है. सोनार की मदद से भी धरती पर मौजूद महासागरों का केवल 0.05 प्रतिशत हिस्सा ही मापा जा सका है. अगर समुद्र की सबसे गहरे हिस्से यानी मारियाना ट्रेंच की बात करें तो यहां अब तक केवल छह लोग ही जा पाये हैं. उनमें से एक हॉलीवुड के प्रसिद्ध फिल्ममेकर जेम्स कैमरून हैं, जिन्होंने खुद इस मिशन पर जाने के लिए 10 मिलियन डॉलर्स खर्च किये थे. वे 10,898 मीटर की गहराई तक पहुंचने में सफल रहे थे.
क्यों मुश्किल है समुद्र के अंदर जा पाना
यह आश्चर्यजनक है कि धरती से बाहर निकल कर अंतरिक्ष में दूसरे ग्रहों और उपग्रहों पर रिसर्च करना पृथ्वी पर मौजूद महासागरों में रिसर्च करने से ज्यादा आसान है. इसके पीछे कई कारण हैं. समुद्र की गहराइयों में दबाव लगातार बढ़ता चला जाता है. समुद्र तल में दबाव लगभग 50 जंबो जेट के बराबर हो जाता है, जो मजबूत-से-मजबूत चीज को भी पल भर में मसलने की ताकत रखता है. स्पेसशिप या प्रोब बनाना भले ही खर्चीला और मुश्किल है, लेकिन उससे भी ज्यादा मुश्किल ऐसी पनडुब्बी बनाना है, जो इतने भयानक दबाव को सहन कर सके. दूसरा कारण यह भी है कि स्पेस में सभी ऑब्जेक्ट्स को देख पाना संभव होता है, क्योंकि वहां तारों की रोशनी मौजूद होती है. वहीं महासागरों की अनंत गहराइयों में सूरज की रोशनी शायद ही कभी पहुंची हो. यहां घुप्प अंधेरे में कुछ भी देख पाना लगभग असंभव है. यहां का तापमान भी -4 डिग्री सेल्सियस तक रहता है. इसके अलावा यहां अनदेखे अनजाने जीवों का डर भी रहता है.
क्या महासागरों में भी होते हैं एलियन
अनंत महासागर की विषम परिस्थितियों में रहनेवाले जीव भी अनोखे ही होते हैं. ऐसे जीव, जिन्हें देखकर आप एलियन समझ लेंगे. अब धीरे-धीरे समुद्र विज्ञानी इन जीवों को खोजने में सफल हो रहे हैं. कई जीव ऐसे हैं, जिनकी आंखें लगातार अंधेरे में रहने के कारण असामान्य रूप से बड़ी हैं, तो कुछ ऐसे भी जीव हैं, जिनकी आंखें लंबी मांसपेशियों द्वारा चेहरे से अलग से जुड़ी हुई हैं. कुछ जीवों के चेहरे में सिर्फ मुंह और विशाल जबड़े के सिवाय और कुछ है ही नहीं. ये हमेशा शिकार की तलाश में भटकते रहते हैं. यहां आपको पारदर्शी जीव जैसे सी कुमुम्बर और जेलीफिश भी मिलेंगे, जिनके आर-पार देखना संभव है. इसके अलावा यहां विशालकाय जीवों के होने की भी संभावना है.
कैसे होते हैं अंडर वाटर व्हीकल्स
पानी के अंदर जाने वाले शिप्स दो तरह के होते हैं, ह्यूमन ऑक्युपाइड और रिमोट ऑक्युपाइड व्हीकल्स. इसके अलावा ड्रोन की ही तरह अनमैन्ड रिमोट ऑक्युपाइड व्हीकल्स भी होते हैं. इसे उन जगहों पर भेजा जाता है, जहां वैज्ञानिकों का जाना संभव नहीं होता है. ये मेन शिप से एक केबल के द्वारा जुड़े रहते हैं. इसके अलावा ऑटोनॉमस अंडरवाटर व्हीकल्स भी होते हैं, जिन्हें प्री प्रोग्राम किया जाता है. ये केबल से कनेक्टेड नहीं होते और स्वतंत्र रूप से पानी के अंदर काम करते हैं.
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