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शनि देव भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे और प्रदोष व्रत बहुत पवित्र और विशेष होता है, शनि दोष से पीड़ित लोगों को शनि प्रदोष व्रत जरूर करना चाहिए, इससे जीवन में चल रहे कष्टों से छुटकारा मिलता है।
By Manoj Kumar Tiwari
Publish Date: Fri, 05 Apr 2024 09:58 PM (IST)
Updated Date: Fri, 05 Apr 2024 10:01 PM (IST)
HighLights
- प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करने का भी विधान
- छह अप्रैल को रखा जाएगा व्रत
- ऐसे करें शनिदेव की पूजा
नईदुनिया प्रतिनिधि, बिलासपुर। चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी छह अप्रैल को है। इस दिन शनिवार पड़ने के चलते यह शनि प्रदोष व्रत कहलाएगा। इसे शनि त्रयोदशी भी कहा जाता है। भक्त शनिदेव की कृपा पाने इस दिन प्रदोष व्रत रखेंगे। प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करने का भी विधान है। ज्योतिषाचार्य पंडित देव कुमार पाठक के अनुसार सूर्य देव के कहने पर शनि देव ने भगवान शिव की कठिन तपस्या की थी। शनि देव की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें नवग्रहों में श्रेष्ठ स्थान प्रदान किया। शनि त्रयोदशी का व्रत करने से व्यक्ति के जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संकट यथाशीघ्र दूर हो जाते हैं। अतः शनि त्रयोदशी तिथि पर भगवान शिव संग शनि देव की पूजा की जाती है। इस दिन भगवान शिव के साथ-साथ शनिदेव की भी पूजा करनी चाहिए। त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करने का भी विधान है। शनि प्रदोष व्रत बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
शनि देव भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे और प्रदोष व्रत बहुत पवित्र और विशेष होता है, शनि दोष से पीड़ित लोगों को शनि प्रदोष व्रत जरूर करना चाहिए, इससे जीवन में चल रहे कष्टों से छुटकारा मिलता है। शनिदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। न्यायधानी में प्रतिवर्ष इस दिन बड़ी संख्या में भक्त व्रत रखते हैं। राजकिशोर नगर, शनिधाम चिल्हाटी, काली मंदिर रेलवे एवं तेलीपारा एवं रतनपुर शनिदेव मंदिर में बड़ी संख्या में भक्त पूजा-अर्चना करने पहुंचते हैं।
ऐसे करें शनिदेव की पूजा
इस दिन सुबह जल्दी उठें और पवित्र स्नान करें। इसके बाद पूजा घर को अच्छी तरह साफ करें। एक चौकी पर भगवान शिव और देवी पार्वती की मूर्ति स्थापित करें। पंचामृत और गंगाजल से उन्हें स्नान कराएं। अब सफेद चंदन और कुमकुम का तिलक लगाएं। इसके बाद देसी घी का दीपक लगाएं। फल, मिठाई और खीर का भोग लगाएं। शिव चालीसा, शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करें। आरती के साथ पूजा समाप्त करें। प्रदोष पूजा हमेशा शाम में की जाती है, इसलिए इसे शाम में ही पूजा करें।
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