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World Water Day: बेंगलुरु की हाउसिंग सोसायटी प्रेस्टीज फाल्कन सिटी की खबर तो आपने देखी – सुनी होंगी. भूल गए क्या ? हम याद दिलाते हैं. कल – परसों की ही बात है. नेशनल मीडिया की हेडलाइन ही बेंगलुरु में जल संकट (Bengaluru water crisis) थीं. भीषण जल संकट से गुजर रहे आईटी सिटी के लोग अपनी परेशानियों को सोशल मीडिया पर साझा कर रहे हैं. कोई घर में पानी नहीं होने का रोना रो रहा है. कोई शॉपिंग मॉल के टॉयलेट का इस्तेमाल करने की मजबूरी वाली पोस्ट डाल रहा है. किसी ने जरूरत भर का पानी लाने की कहानी ऐसे बयां की मानों बर्फीली हवाओं में एवरेस्ट फतह कर लौटा है. आज (22 मार्च ) विश्व जल दिवस (World Water Day) पर कसम खा लीजिए कि बाइक – कार की धुलाई बाल्टी में पानी भरकर मग – लोटा से करेंगे. आंगन – फर्श को साफ रखने के लिए झाड़ू- पोछा लगाएंगे. सड़क पर उड़ती धूल को खत्म करने के लिए जल का छिड़काव ‘ मशक ‘ विधि से करेंगे. एक गिलास ताजी पानी के नाम पर आप जो बार- बार सबमर्सिबल चला रहें हैं. इस आदत को बदल दीजिए. यदि ऐसा नहीं किया तो कुछ सालों में आप का हाल ये होगा कि बैंक खाता भले में लाखों करोड़ों रुपये से भरा हो, आपकी छत की टंकी खाली होगी. नहाने से कपड़े धोने तक के लिए घर में ही लॉटरी निकालनी पड़ जायेगी.
हर व्यक्ति के बैंक खाते में पैसा बढ़ा लेकिन जलराशि घटी
बिहार खासकर उत्तरी क्षेत्र 25 साल बाद सबसे खराब जल संकट का सामना कर रहा होगा. घर की सफाई, खाना पकाने जैसे घरेलू कामों के लिए आपको सात दिन में भी उतना पानी नहीं मिलेगा, जितना आप अभी एक दिन में बाइक धुलने से लेकर सड़क की उड़ती धूल को शांत करने में खर्च कर देते हैं. आपको भरोसा नहीं हो रहा. बीती उतरती साल (2023) में बिहार सरकार की एक बैठक में जमा हुए देशभर के वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 2050 तक यह स्थिति पैदा हो सकती है. यह कोरी धप्प या अंदाज नहीं है, आंकड़े कह रहे हैं. एक रिपोर्ट बताती है कि बीते 12 साल में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता 539 घन मीटर घट गई है. साल 2011 में हर व्यक्ति के हिस्से में सतही जल 1594 घन मीटर था. साल 2023 आते- आते यह घटकर 1055 घन मीटर पर पहुंच गई है. साल 2050 तक यह 635 घन मीटर पर पहुंच जाएगी. एक घन मीटर में 1000 लीटर होते हैं.
47 नदियों का पानी फिर भी पूर्वी चंपारण के सूख गये चापाकल
दरभंगा के बेनीपुर, बिरौल, घनश्यामपुर, तारडीह, गौड़ाबौराम, अलीनगर प्रखंड में सबसे अधिक आर्सेनिक पाया गया है. समस्तीपुर के उजियारपुर प्रखंड में भूगर्भ जलस्तर छह फीट तीन इंच नीचे चला गया है. यहां आर्सेनिक की मात्रा 800 पीपीबी (प्रति बिलियन भाग) तक मिली है. डॉक्टर कहते हैं कि पानी में आर्सेनिक की अधिक मात्रा गंभीर बीमारी देकर तेजी से जान लेती है. महात्मा गांधी ने जिस धरती से अंग्रेजों को चुनौती देकर इंग्लैंड तक को जगा दिया, वहां के लोग अपना पानी बचाने को नहीं जाग पा रहे हैं. इसका अंजाम ये है कि पूर्वी चंपारण, जिससे छोटी, बड़ी , पहाड़ी कुल 47 नदियां हैं. लेकिन छौड़ादानो, रक्सौल, आदापुर तथा सदर क्षेत्र के ध्रुव लखौरा के चापाकल सूखे हैं. 2023 में यहां पानी के टैंकर भेजने पड़े थे.
2050 तक कम हो जायेगा 12873 मिलियन क्यूबिक मीटर सतही जल
बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष रहे अशोक कुमार घोष का कहना है कि बिहार में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता घट रही है. अशोक कुमार घोष की इस चिंता की पुष्टि बिहार सरकार के आंकड़े भी करते नजर आ रहे हैं. कृषि रोड मैप को लेकर 2023 में वैज्ञानिक- विशेषज्ञों का पटना में जुटान हुआ था. इसमें आकलन किया गया था कि बिहार को 2050 तक 145048 मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम) पानी की जरूरत होगी. बिहार के पास अभी पानी की उपलब्धता 132175 एमसीएम है. यानी आज से पानी की हर बूंद बचाकर चलेंगे तभी भी 2050 आते- आते 12873 मिलियन क्यूबिक मीटर सतही जल कम पड़ जायेगा. पानी बर्बाद किया तो फिर क्या होगा इसकी कल्पना से ही रूह कांप जाएगी. डॉ घोष के अनुसार जल संरक्षण, वॉटर रिजार्च और जन जागरूकता ही विकल्प है. जनभागीदारी के बिना यह संभव नहीं है. बिहार में जल स्रोत बढ़ती आबादी के लिहाज से कम हैं. ग्राउंड वाटर के दोहन की यह स्थिति रही तो कुछ दशक में हम गंभीर स्थिति में पहुंच जाएंगे. दरभंगा सहित उत्तर बिहार के कई इलाकों की स्थिति और भी चिंताजनक है.
पानी को लेकर यह है मानक
केंद्रीय जल आयोग द्वारा आयोजित “अंतरिक्ष इनपुट का उपयोग करके भारत में जल उपलब्धता का पुनर्मूल्यांकन अध्ययन के आधार पर वर्ष 2031 के लिए औसत वार्षिक प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 1367 घन मीटर आंकी गई है. 1700 घन मीटर से कम वार्षिक प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता को जल संकट की स्थिति मानी जाती है. जबकि 1000 घन मीटर से कम वार्षिक प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता को जल कमी की स्थिति माना जाता है.
क्या कहते हैं अधिकारी
पानी की रिसाइकिल, रेन वाटर हार्वेस्टिंग , जनता को अवेयर करना बहुत जरूरी है. हम लोग पानी को यूं ही बर्बाद नहीं कर सकते. लाइफ स्टाइल बदलने से पानी की प्रति व्यक्ति खपत तेजी से बढ़ी है. सरकारी तंत्र एक- एक आदमी की निगरानी नहीं कर सकता. बोतल बंद अथवा आरओ की सभी को जरूरत नहीं है. मेरे घर के आसपास सभी आरओ का पानी पीते हैं, मैं खुद बोरिंग का सीधा पानी पीता हूं और निरोगी हूं. समय- समय पर वाटर सप्लाई या बोरिंग आदि के पानी की लैब में जांच जरूर कराते रहें. पीएचइडी विभाग की लैब में फ्री में यह जांच होती है. नदियों को भी प्रदूषण से बचाना होगा.
अशोक कुमार घोष
पूर्व अध्यक्ष , बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
अरब के दो देश अपनी प्यास बुझा लें, मुजफ्फर में रोज इतना पानी नाले पर बह रहा
मुजफ्फरपुर में नये मकान बनाने की अनुमति तभी मिलती है जब पानी बचाने के वाले वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को अपनाया जाता है. अमेरिका, इंग्लैंड, जापान आदि जिन देशों में अपने बच्चों को पढ़ने – पढ़ाने के लिए भेज रहे हैं वहां शौचालय का पानी भी रिसाइकल कर घर में इस्तेमाल किया जा रहा है. वह मुजफ्फरपुर एक दिन में 48.50 लाख लीटर पीने का पानी सड़क और नाले नालियों में बहा दे रहा है. यह पानी इतना है कि अफ़्रीका के पूर्वी छोर पर स्थित कोमोरोस जितनी आबादी वाले दो देश के लोग एक दिन पानी पी लें. एक व्यक्ति को एक दिन में 3.2 लीटर पानी की जरूरी होती है. हमारी बात पर भरोसा नहीं है ? चलिए आपको इसका गणित बताते हैं. शहर में करीब 150 वाहन धुलाई सेंटर हैं. एक सेंटर पर एक दिन में 30 बाइक और 10 कार भी धुली तो 13.50 लाख पान खर्च हो जाएगा. एक बाइक 150 , कार की धुलाई पर 500 लीटर पानी खर्च कर दिया जाता है. अब डिब्बा बंद पानी पर आते हैं. बंद बोतल पानी की शहरी क्षेत्र में 50 से अधिक फैक्ट्रियां रजिस्टर्ड हैं. हर फैक्ट्री अपनी सप्लाई पूरी करने को करीब 50 हजार लीटर पानी बर्बाद कर देती है. इस तरह 50 फैक्ट्रियां करीब 25 लाख लीटर पानी बर्बाद कर दे रही हैं. नगर निगम के पाइपलाइन्स के लीकेज और कॉर्क आदि के कारण शहर भर में लगे नल से एक – एक बूंद कर 10 लाख लीटर पानी प्रतिदिन बर्बाद हो जा रहा है.
सिरसिया नदी का पानी सबसे प्रदूषित, चार साल में तीन गुना बढ़ा जल प्रदूषण
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बीते साल एक रिपोर्ट जारी की थी. इसमें बिहार में प्रदूषित नदी खंडों की संख्या पिछले चार वर्षों में तीन गुना बढ़ने की बात सामने आई है. अध्ययन में कहा गया है कि राज्य में प्रदूषित नदी खंडों (पीआरएस) की संख्या 2018 में छह से बढ़कर 2022 में 18 हो गई है. पूर्वी चंपारण में सिरसिया नदी का पानी सबसे प्रदूषित पाया गया था. बागमती, बूढ़ी गंडक, सिकरहना, दाहा, धौस, गंडक, गंगा, गांगी, घाघरा, हरबोरा, कमला, कोहरा, लखनदेई, मनुस्मार, परमार, पुनपुन, रामरेखा, सिरसिया और सोन नदी प्रदूषित मिलीं. इनमें अधिकांश नदियां उत्तर बिहार से गुजरती हैं. प्रदूषण के स्तर के आधार पर पीआरएस को पांच श्रेणियों ( एक से पांच तक) में वर्गीकृत किया गया है. यदि पानी का बीओडी 30 मिलीग्राम/लीटर से अधिक है तो इसे श्रेणी वन में वर्गीकृत किया जाता है. सिरसिया नदी में दो स्टेशनों पर बीओडी 30 एमजी प्रति लीटर की सीमा तक दर्ज किया गया. इसके बाद रामरेखा और लखनदेई नदियां थी. यह भी गंभीर रूप से प्रदूषित नदी हैं. इस रिपोर्ट के बाद बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष अशोक कुमार घोष ने स्वीकार किया था कि सीवेज, घरेलू कचरा और बायोमेडिकल कचरे का मानक के अनुसार ट्रीटमेंट न होने से नदियों के साथ – साथ ग्राउंड वाटर भी प्रदूषित हो रहा है.
माता जानकी के मायके का पानी तो अच्छा लेकिन नीचे जा रहा
डुमरा : माता जानकी की जन्मस्थली सीतामढ़ी भी जल संकट से अछूती नहीं है. यहां भूगर्भ जल का स्तर हर साल नीचे जा रहा है. इसी मार्च में औसत जलस्तर 20 फीट 11 इंच रिकॉर्ड किया गया है जबकि यह बीते साल के मुकाबले नीचे पहुंचा है. पानी में आर्सेनिक की मात्रा शून्य होना लोगों के लिए अच्छी खबर है. लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के ताजी आंकड़े बताते हैं कि जिला में सबसे ऊपर मेजरगंज में पानी है. यहां भूगर्भ जल का स्तर 16 फीट 9 इंच है. बाकी जगह 18 से 31 फीट के बीच में है. परिहार में 30 फीट 5 इंच पर पानी है. परसौनी में 22 फीट 9 इंच, रसंड में 22 फीट 6 इंच, बैरगनिया में 21 फीट 5 इंच बथनाहा में 21 फीट 4 इंच तथा बाजपट्टी प्रखंड में भूगर्भ जलस्तर 20 फुट 1 इंच है.
पश्चिम चंपारण की स्थित बेहतर, धनौती नदी हो गयी जिंदा
पश्चिम चंपारण जिले में भूगर्भ जलस्तर औसत 12’10” है. आर्सेनिक की स्थिति जीरो है. जिले में सोख्ता निर्माण कराया जा रहा है. पूर्वी चंपारण को जल शक्ति मंत्रालय की ओर से जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग द्वारा जल संरक्षण व प्रबंधन के क्षेत्र में बेहतर प्रयास के लिए राष्ट्रीय स्तर पर पूर्वी क्षेत्र के सर्वश्रेष्ठ जिले का सम्मान वर्ष-2022 में मिल चुका है. छह किमी में धनौती नदी की सफाई कर मृतप्राय नदी को जीवित कर लिया गया है. जल संचय के लिए नदी किनारे चार तालाब भी बनाए हैं. नदी की गाद से दोनों किनारों पर बांध का निर्माण कराया गया.
उत्तर बिहार में जल संरक्षण के लिए बनीं ये योजनाएं
चतुर्थ कृषि रोड मैप में उत्तर बिहार के जिला मुजफ्फरपुर, चंपारण, समस्तीपुर, दरभंगा, मधुबनी और सीतामढ़ी जिलों में जल संरक्षण करने के लिए कई योजनाओं को शामिल किया गया है. सरकार राज्यभर में करीब 2304 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे. इसमें उत्तर बिहार को प्रभावित करने वाली बागमती नदी पर बाढ़ प्रबंधन, अधवारा-समूह में तटबंधों का निर्माण, गंडक- छाड़ी गंगा नदी तथा गंडक-दाहा-घाघरा नदी जोड़ योजना के विकास की मास्टर प्लान बनाया गया है. वर्ष 2028 तक यह कार्य पूरे करने की समय सीमा तय की गई है. कृषि रोड मैप के तहत बिहार के जिन 10 जिलों में कुआं, आहर-पइन, तालाब और चेक डैम की मरम्मत की योजना तैयार की गई है उसमें उत्तर बिहार के दरभंगा और मुजफ्फरपुर जिला भी शामिल हैं. 2024 तक गांव के हर घर में नल के पानी की आपूर्ति का प्रावधान करने के लिए जल जीवन मिशन (जेजेएम) लागू की गयी है.
समस्तीपुर- दरभंगा में हो रहे ये काम
समस्तीपुर जिले का औसत जलस्तर 20 फीट 9 इंच है. उजियारपुर प्रखंड का जलस्तर 26 फीट 4 इंच पहुंच गया. पूसा का जल स्तर 26 फीट 1 इंच पर है. बिथान प्रखंड का जलस्तर सबसे ऊपर 15 फीट पर है. यहां भूगर्भीय जल में आर्सेनिक के अलावा फ्लोरिन और आयरन की मात्रा अधिक पायी गयी है. हालांकि 544 वाटर ट्रीटमेंट लगाकर स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है . बागमती नदी की 65000 क्यूसेक पानी को बूढ़ी गंडक नदी में जोड़ने की योजना जन विरोध के कारण अटकी है. दरभंगा में नदियों के पानी की गुणवत्ता की जांच कब हुई यह पीएचइडी विभाग को पता नहीं है. यहां की जमीन में 17.4 मीटर नीचे पानी है. जीवन हरियाली योजना के जिला मिशन प्रबंधक ऋतुराज के अनुसार अब तक इस अभियान के तहत 805 सार्वजनिक जल संचयन संरचना एवं 289 कुओं को अतिक्रमण मुक्त कर लिया गया है. 893 सार्वजनिक जल संचयन संरचना, 728 कुआं का जीर्णोद्धार किया गया है. 3931 सोखता, 26 चेक डैम, 1628 नए जल स्रोतों (खेत -पोखर ) का निर्माण, 387 छत वर्षा जल संचयन संरचनाओं का निर्माण किया गया है. जल संरक्षण अभियान के तहत पोखर बचाओ- जीवन बचाओ संगठन इस दिशा में लगातार अभियान चला रहा है.
यह जल शक्ति अभियान: कैच द रेन
1 जल संरक्षण और वर्षा जल संचयन
2 सभी जल निकायों की गणना, जियो-टैगिंग और सूची बनाना. इसके आधार पर जल संरक्षण के लिए वैज्ञानिक योजनाएं तैयार करना
3 सभी जिलों में जल शक्ति केंद्रों की स्थापना
4 सघन वनीकरण
5 जागरूकता पैदा करना
क्या कहते हैं लोग
पानी के सभी स्रोतों के संरक्षण के साथ-साथ उनको प्रदूषण से मुक्त रखने के लिए साउथ बिहार से लेकर नार्थ बिहार तक एक साथ काम करने की जरूरत है. सरकार और जनता का सामूहिक प्रयास ही आने वाले जल संकट से बिहार को बचा सकता है.
राजीव कुमार
एक्टिविस्ट
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