Home Blog The Goat Life Movie Review: कहानी है शानदार

The Goat Life Movie Review: कहानी है शानदार

0
The Goat Life Movie Review: कहानी है शानदार

[ad_1]

फिल्म- द गोट लाइफ
निर्देशक- ब्लेस्ली
निर्माता- ब्लेस्ली,स्टीवन और अन्य
कलाकार-पृथ्वीराज सुकुमारन, के आर गोकुल,अमला पॉल,जिमी जीन और अन्य
प्लेटफार्म- सिनेमाघर
रेटिंग- तीन

सर्वाइवल ड्रामा विदेशों में बहुत ही लोकप्रिय जॉनर रहा है. जिसमें कई शानदार फिल्में शामिल है. भारतीय सिनेमा में यह जॉनर उतना एक्सप्लोर नहीं किया गया है, लेकिन समय समय पर इस जॉनर पर फिल्में बनती रही है. इसका हालिया उदाहरण फिल्में द गोट लाइफ है.

मलयालम साहित्य के सबसे लोकप्रिय उपन्यास ‘आडुजीवितम’ की कहानी को परदे पर फिल्म के निर्देशक ब्लेस्ली ने उतारा है. यह कहानी इसलिए भी खास है क्योंकि यह कहानी असल में नजीब नामक शख़्स की है, जिन्हें तीन साल तक खाड़ी देश में ग़ुलाम बनाकर रखा गया था. यह फिल्म उससे जुड़े यातना और गुलामी की दिल को दहला देने वाली सच्ची कहानी को सामने लाती है. पृथ्वीराज सुकुमारन का शानदार अभिनय ज़िंदगी की मुश्किलों से लड़ने का मंत्र देती इस कहानी को और इमोशनल बना गया है.

यातना और गुलामी की सच्ची कहानी

कहानी की बात करें तो केरल में नजीब (पृथ्वीराज सुकुमारन) अपनी मां और पत्नी सैनी (अमला पॉल) के साथ रह रहा है. अभावों के बावजूद वह अपनी ज़िन्दगी में खुश है. एक दोस्त के समझाने से एक दिन वह अपने परिवार को बेहतर जीवन देने के लिए खाड़ी देश में नौकरी करने का फैसला करता है. अपने घर को गिरवी रख कर वह सऊदी अरब पहुंच तो जाता है, लेकिन वह खुद को रेगिस्तान के बीच में बकरियां चराने वाले एक गुलाम के रूप में पाता है, जिसे पूरे दिन में खाने के नाम पर एक रोटी मिलती है और पानी के नाम पर कुछ घूंट. वह घर वापस जाना चाहता है, भागने की कोशिश भी करता है लेकिन मालिक द्वारा पकडे जाने पर उसके एक पैर को तोड़ दिया जाता है. दिन ,सप्ताह में और सप्ताह महीने में और महीने साल में बदल जाते हैं. तीन साल बीत जाते हैं,लेकिन नजीब को याद नहीं है क्योंकि वह उस जानवरों की रख रखाव वाली जगह में खुद भी अपने को उन जानवरों जैसा ही मान चुका है. उसे उम्मीद भी नहीं है कि वह यह यहां से निकल पायेगा. यातना और गुलामी के इस भयानक जीवन से क्या वह बच पायेगा ? क्या रेगिस्तान से निकलकर वह केरल अपने घर लौट पायेगा. यह सब कैसे होता है. यही फिल्म की आगे की कहानी है.

फिल्म की खूबियां और खामियां

यह फिल्म अच्छी ज़िन्दगी की चाह में विदेशों की ओर रुख करने वाले लोगों की दिल दहला देने वाली तस्वीर को सामने लेकर आती हैय जो कई बार आंखों को नाम कर जाती है. निर्देशक ने बारीकी के साथ कहानी में हर दर्द को जोड़ा है. फ़िल्म में सऊदी अरब के कई संवादों को सब टाइटल नहीं दिया गया है शायद मेकर की कोशिश यह रही हो कि किरदार जिस तरह से भाषा को ना समझने की परेशानी से जूझ रहा है. वह परेशानी दर्शक भी महसूस कर सके और वह इसमें कामयाब रहे हैं. फिल्म की सिनेमेटोग्राफ़ी बेहतरीन है. यह फिल्म की कहानी और किरदार दोनों को समय- समय पर मज़बूती देता है. दूर – दूर तक फैले रेगिस्तान के दृश्य हो या केरल का बैक वाटर वह कहानी में एक अलग रंग भरते हैं. गीत संगीत कहानी के अनुरूप है. बैकग्राउंड म्यूजिक अच्छा बन पड़ा है. ख़ामियों की बात करें तो नजीब का किरदार पानी के महत्व को तीन साल में समझ चुका था ऐसे में वह भागते हुए पानी अपने साथ लेकर क्यों नहीं चला था. जिमी जीन के किरदार को रेगिस्तान की जानकारी थी तो क्या उससे जुड़ी परेशानियों से वह अंजान था. ख़ामियों में फिल्म की लम्बाई थोड़ी काम की जा सकती थी. खासकर दूसरे भाग में कहानी दोहराव करती दिखती है. इससे कहानी का प्रभाव थोड़ा कम हो गया.

पृथ्वीराज सुकुमारन का शानदार अभिनय
पृथ्वीराज सुकुमारन का अभिनय शानदार है. डर,झुंझलाहट,बेबसी ,हार,संघर्ष और दर्द के सारे भाव उनके चेहरे पर देखने को मिलते हैं. नजीब का किरदार निभाने के लिए उन्होंने एक्सप्रेशन के साथ – साथ अपनी बॉडी को भी उसी में ढाल लिया हैं. जिसके लिए उनकी सराहना की जानी चाहिए. वजन कम करने से लेकर दाढ़ी बढ़ाने, काले दांत और गंदे नाखूनों तक को उन्होंने अपने किरदार में आत्मसात कर लिया है. के आर गोकुल का रोल छोटा जरूर है, लेकिन वे अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने में कामयाब रहे हैं. जिमी जीन और तलीब का अभिनय भी याद रह जाता है. अमला पॉल भी अपने किरदार के साथ न्याय करती है.

[ad_2]

Source link

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here